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Showing posts from January, 2017

सरकार द्वारा देश वासियो के लिए छोड़ा गया सगुफा

नोटबंदी के पचास दिन से ज्यादा हो गये, इन पचास दिन में 130 लोग ऐसे थे जो कतारो में खड़े खड़े मर गये, मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन मे गर्भवती महिलाओं को छहजार रुपये देने की घोषणा कर दी। मानो यह एक तरह की रिश्वत थी जिसने जिसने सभी की जबान बंद कर दी, विपक्ष की भी, लाईन में खड़े आम आदमी की भी। अब नोटबंदी पर कोई चर्चा नहीं हो रही है न मीडिया में न ही सोशल मीडिया में लगता है सारा ‘काला धन’ वापस आ गया है। और अब बहुत जल्द ही अच्छे दिन आने वाले हैं। मगर वे जो 130 लोग लाईन में लगकर मरे हैं उनका क्या अगर 260 मर जाते तो ?  अगर एक हजार मर जाते तो ? क्या उनका तब भी कुछ होता ? हालात ऐसे हैं कि तब भी कहीं से विरोधी स्वर सुनने को नहीं मिलते और अगर मिलते भी तो मीडिया उन आवाजों को ‘अच्छे दिन’ के शौर में दबा देता। भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी गोल मेज पर बैठकर लाईन में लगे लोगों को मजाक उड़ा रहे थे कि कैसे देशभक्ती के नाम पर लोगों का उल्लू बनाया है, और लोग भी कितनी आसानी से उल्लू बन रहे थे। बहरहाल असल सवाल है कि इस नोटबंदी से कितना तो लाभ हुआ कितना फायदा हुआ ? तीन महीनो होने को जा रहे ह

यूपी चुनाव

मोदी जी भीड़ देख के चुनावी, माहौल का अंदाजा लगा रहे है           साहब ,यूपी है.... लुं गी बेचने वाला मोहल्ले में आ जाये तो भी सौ-पचास लोग जुट जाते है.😂😂😂😂

"डिजिटल इंडिया" का अगुवा रिलायंस -"जियो" बना

"डिजिटल इंडिया" का अगुवा रिलायंस -"जियो" बना, जबकि मौका बीएसएनएल / एमटीएनएल के पास पूरा था...! कैशलेस इकोनॉमी का अवतार एनपीसीआई के "रुपए" को बनना चाहिए था... लेकिन बाज़ी सीधे-सीधे "पे-टीएम" के हाथ लगने दी गई...! फ्राँस के रफेल फ़ाइटर जेट का भारतीय पार्टनर हिंदुस्तान एरोनौटिक्स लिमिटेड को होना चाहिए... लेकिन ऑर्डर मिला रिलायंस - "पिपावा डिफेंस"...! भारतीय रेल को डीज़ल सप्लाई का ठेका इंडियन ऑइल कार्पोरेशन को मिलना चाहिए था लेकिन मिला रिलायंस पेट्रोकेमिकल्स को..! ऑस्ट्रेलिया की खानों के टेंडर में सरकार चाहती तो "एमएमटीसी" की बैंक गारंटी एसबीआई के जरिये दे सकती थी... लेकिन मिला अडानी ग्रुप को...! सरकारी संस्थानों को जान-बूझकर प्राइवेट कंपनियों का पिछलग्गू बनाकर किसे फ़ायदा पहुँचाया जा रहा है...? अगर फ़िस्क़ल और मॉनेटरी पाॅलिसीज़ में चेंजेज़ आ ही रहे हैं, तो इसका मुनाफ़ा सरकारी उपक्रमों को मिलने के बजाय निजी हाथों में क्यों दे रहे रहे हैं... ? सुनिए, राजनीति और राष्ट्रहित कभी एक नहीं हो सकते... देशप्रेम और किसी व्यक