"सहाबा इकराम रजि. की मेंहनत से सारे आलम में इस्लाम फैला"


यू समझये एक मेंहनत है जो हुजूर अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा इकराम ने एक ख़ास नक्शे के साथ की है हम भी चाहते है के हम उस मेंहनत के तरीके को सीखे औऱ अलहमदुलिल्लहा दोस्तो ने मुतफ़रिक मुल्को में कुछ कुछ इस को सीखना शुरु भी कर दिया है लेकिन किसी जगह की मेंहनत इंतिहा को पहुंची हुई नहीं है बल्के मेंहनत दर्जो में है अगर जगह की मेंहनत करने वाले यू समझे के पूरी मेंहनत ये ही है और इस की शक्ल भी ये ही है तो मेंहनत की असल शक्ल पर कोई नहीं पहुंच सकेगा जो भी मेंहनत करे वो यू समझे के में जो मेंहनत कर रहा हूं ये इब्तिदाई मेंहनत है और मुझे मेंहनत करते करते हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मेंहनत के नक्शे पर पहुंचना है अब जब वो इस मेंहनत को असल जानेगे तो इंसान समझेगा के इस के मुकाबले में ये मेंहनत छोटी सी है असल नहीं है अगर वो असल मेंहनत के सामने हो तो फिर इंसान समझेगा के मेंरी मेंहनत इस के मुकाबले में बहुत छोटी है लिहाजा असल मेंहनत पर पहुँचना है इस मेंहनत को सामने रखे और मेंहनत करे और सोचे के मुझे तरकी कर के असल मेंहनत तक पहुँचना है अब एक तरफ तो ये सोचना के इस मेंहनत का फाइदा क्या है और दूसरी तरफ समझना के मेंहनत क्या है ? इस मेंहनत का फाइदा तो ये है के मेंहनत करने वालो को और दूसरो को हिदायत मिलेगी और खु़दा की तरफ से हिदायत इतनी मिलेगी जितनी मेंहनत की सतह बुलंद होती जायेगी अगर ये मेंहनत खत्म हो जाती है तो मुसलमानो से हिदायत निकलनी शुरु हो जाती है पहले कारोबार में से हिदायत निकलती है यानि लोग कारोबार में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीके छोड़ कर दुसरे तरीके इख्तियार करते है फिर निकलते निकलते सारे फराइज निकल जाते है और बिराइया दाखिल हो जाती है यहाँ तक के मुसलमान दीन से निकल जाते है और अगर फिर भी मेंहनत की तो जा ना हो तो इस्लाम निकल कर कुफ्र आ जाता है और जब ये मेंहनत शुरु कर दी जाती है तो खुदा की तरफ से हिदायत आनी शुरु हो जाती है फिर जिस दर्जे मेंहनत बुलंद होती जायेगी हिदायत आम होती जायेगी और लोगो को हिदायत मिलती जायेगी .. हिदायत की एक सतह तो ये है के लोग नमाज़ पढने लगे ज़कात देने लगे रोज़े रखने लगे हज़ करने लगे दूसरी ये है के अपनी कमाई और इख़राजात को दीन के मुताबिक करने लगे और इन को शरीयत के नक्शे में के मुताबिक ले आये इस से अगली सतह यह के गैरमुसलमानों को ख़ुदा हिदायत फरमा दे - मेंहनत के बक़द्र हिदायत आवेगी और हिदायत के बकद्र दीन जि़ंदा होगा "हिदायत ख़ुदा की तरफ से मेंहनत के बकद्र आवेगी" अब हम ये देख रहे है के मुसलमान दीन पर नहीं चल रहे है और दीन से निकल कर कुफ्र व शिर्क ज़लालत में जा रहे रहे और इस्लाम से निकल कर दुसरो के बातिल मजहब इख्तियार कर रहा है इस की वजह ये ही है के दीन के लिये मेंहनत निकल चुकी ... अब जितनी जहा लोगो ने मेंहनत करनी शुरु कर दी इतनी ही खुदा ने हिदायत देनी शुरु कर दी -और बकद्र हिदायत के दीन जिंदा होने लगा --बहुत सी जगह नमाज नहीं थी नमाज़ पढी जाने लगी रोजे नहीं थे रोजे रखे जाने लगे हज़ नहीं था हज़ किया जाने लगा तालीम नहीं थी तालीम की जाने लगी लेकिन हिदायत भी इस सतह की नहीं मिली के कमाई के अंदर के अहकाम पूरे होने लगे ,औऱ खाने पीने मकान बनाने में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वाली राह और तरीके को इख्तियार करे तो अभी हम मुसलमान भी इस के मोहताज है के मेहनत की सतह बुलंद हो ताके पूरी जिंदगी दीन इस्लाम पर चलने की हिदायत मिले और गैरमुसलमानो को भी दीन समझने की हिदायत मिले हम मुसलमान भी मोहताज है के हिंदायत इस दर्जे की मिले जाये के हम पूरे दीन पर अमल करने वाले बने और गैरमुसलमानो को भी खुदा हिदायत दे......... अब इस मेंहनत में दो मेंहनते है एक तो मिक़दार में मेहनत को बढ़ाना , दूसरे जो लाग मेहनत कर रहे है उन की मेहनतो का सही शक्ल पर पडना - अब ये दो अलाहिदा अलाहिदा लाइन है अगर हजारो लाखो आदमी मेहनत करने वाले बन जाये , लेकिन थोड़ी थोड़ी करे तो हिदायत भी थोड़ी थोड़ी आयेगी और अगर खुदा ऐसी सुरत कर दे जो थोड़ी मेहनत कर रहे है वही मेहनत की मिकदार को बढ़ा दे तो मुसलमानो को भी हिदायत मिलने लगेगी और गैरमुसलमानो को भी - अभी तक हमारी मेहनत की ये नौईयत ये रही है के मशगूल आदमी मेहनत के लिये थोड़ा थोड़ा ओकात इस अंदाज से निकालते है के उन की कमाइयो के नक्शे में फर्क ना पड़े अल राफी ने बातिल तरीको के फैलने के लिये तो माल के नक्शे दिये है यानी हकुमते तिजारत सामान वगैरा -- हुजूर अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जो तरीके है उन के लिये साथियो से कुर्बानिया दिलवाई तो मेंहनत करने वालो में जितनी उन की वाली कुर्बानिया करने वाले पैदा होंगे तो उन की मेंहनत सतह बुलंद होगी... अब में हुजूर अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की और सहाबा इकराम रजि. की मेंहनत की सतह बतलाता हूं जिस से अगरच हम अभी तक बहुत दूर है.... #बाकी #है #तबलीग़ी #जमात

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